इन सबको सुयोग्य ब्रह्म माना जाता है। इन सबको मिलाने वाला तत्त्व काल है, जिसे पच्चीसवें तत्त्व के रूप में गिना जाता है।
तात्पर्य
वैदिक कथन के अनुसार ब्रह्म के परे कोई अस्तित्व नहीं है—सर्व खल्विदं ब्रह्म (छान्दोग्य उपनिषद् ३.१४.१)। विष्णु-पुराण में भी कहा गया है कि जो कुछ हम देखते हैं वह परस्य ब्रह्मण: शक्ति:—प्रत्येक वस्तु परम सत्य ब्रह्म के विस्तार की शक्ति है। जब ब्रह्म को सतो, रजो तथा तमो गुणों के साथ मिला दिया जाता है, तो भौतिक विस्तार होता है, जिसे कभी-कभी सगुण ब्रह्म कहते हैं जिसमें ये पच्चीसों तत्त्व रहते हैं। निर्गुण ब्रह्म में कोई भौतिक कल्मष नहीं रहता अथवा आध्यात्मिक जगत (वैकुण्ठ) में सतो, रजो तथा तमो—ये तीनों गुण नहीं रहते। जहाँ निर्गुण ब्रह्म विद्यमान रहता है, वहाँ शुद्ध सत्त्व पाया जाता है। सांख्य दर्शन के अनुसार सगुण ब्रह्म में पच्चीस तत्त्व सम्मिलित हैं जिनमें काल (भूत, वर्तमान तथा भविष्य) भी है।
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