वायु तथा स्पर्श तन्मात्राओं की अन्त:क्रियाओं से मनुष्य को भाग्य के अनुसार विभिन्न रूप दिखते हैं। ऐसे रूपों के विकास के फलस्वरूप अग्नि उत्पन्न हुई और आँखें विविध रंगीन रूपों को देखती हैं।
तात्पर्य
दैव, स्पर्श-अनुभूति, वायु की अन्त:क्रियाएँ तथा आकाश तत्त्व से उत्पन्न मन की स्थिति के कारण अपने पूर्वकर्मों के अनुसार मनुष्य को शरीर प्राप्त होता है। कहना अनावश्यक है कि जीव एक शरीर से दूसरे में देहान्तर करता है। भाग्य के अनुसार तथा वायु एवं मानसिक स्थिति की अन्त:क्रिया को नियन्त्रित करने वाली परम सत्ता की योजना द्वारा उसका रूप बदलता है। रूप विभिन्न प्रकार के इन्द्रिय अनुभव का मिलाप है। पूर्वानिर्धारित कर्म मानसिक स्थिति तथा वायु की अन्त:क्रिया की योजनाएँ हैं।
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