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श्लोक 42
श्लोक
3.26.42
कषायो मधुरस्तिक्त: कट्वम्ल इति नैकधा ।
भौतिकानां विकारेण रस एको विभिद्यते ॥ ४२ ॥
शब्दार्थ
कषाय:
—कषैला;
मधुर:
—मीठा;
तिक्त:
—तीता;
कटु
—कड़वा;
अम्ल:
—खट्टा;
इति
—इस प्रकार;
न-एकधा
— अनेक प्रकार का;
भौतिकानाम्
—अन्य वस्तुओं के;
विकारेण
—विकार से;
रस:
—सूक्ष्म तत्त्व स्वाद;
एक:
—मूलत: एक;
विभिद्यते
—विभाजित होता है ।.
अनुवाद
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यद्यपि मूल रूप से स्वाद एक ही है, किन्तु अन्य पदार्थों के संसर्ग से यह कषैला मधुर, तीखा, कड़वा, खट्टा तथा नमकीन—कई प्रकार का हो जाता है।
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