जल की विशेषताएँ उसके द्वारा अन्य पदार्थों को गीला करने, विभिन्न मिश्रणों के पिण्ड बनाने, तृप्ति लाने, जीवन पालन करने, वस्तुओं को मुलायम बनाने, गर्मी भगाने, जलागारों की निरन्तर पूर्ति करते रहने तथा प्यास बुझाकर तरोताजा बनाने में हैं।
तात्पर्य
जल पीकर क्षुधा मिटाई जा सकती है। कभी-कभी यह देखा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति उपवास व्रत रखता है और बीच-बीच में उसे थोड़ा जल दे दिया जाता है, तो उपवास के कारण उत्पन्न क्षीणता कम होती है। वेदों में भी कहा गया है—आपोमय: प्राण:— जीवन जल पर निर्भर है। जल से किसी भी वस्तु को गीला या नम किया जा सकता है। आटे में जल मिलाने से लोई बन जाती है। मिट्टी तथा जल मिलाने से कीचड़ उत्पन्न होता है। जैसाकि श्रीमद्भागवत के प्रारम्भ में कथित है—विभिन्न भौतिक तत्त्वों को जोडऩे वाला अवयव जल ही है। जब हम मकान बनाते हैं, तो ईंटें बनाने में प्रमुख अवयव जल ही होता है। समग्र जगत में अग्नि, जल तथा वायु विनिमयकारी तत्त्व हैं, किन्तु इनमें से जल प्रमुख है। तपते हुए स्थान में जल डाल कर अत्यधिक तप्तता दूर की जा सकती है।
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