तत्पश्चात् वीर्य (प्रजनन क्षमता) और जल का अधिष्ठाता देव प्रकट हुआ। फिर गुदा और उसकी इन्द्रिय और उसके भी बाद मृत्यु का देवता प्रकट हुआ जिससे सारा ब्रह्माण्ड भयभीत रहता है।
तात्पर्य
यहाँ यह समझना होगा कि वीर्य-स्खलन की क्षमता ही मृत्यु का कारण है। अत: योगी तथा अध्यात्मवादी, जो अधिक काल तक जीवित रहना चाहते हैं, वे स्वेच्छा से वीर्य-स्खलन रोकते हैं। जो जितना ही वीर्य-स्खलन रोक सकता है, वह उतना ही मृत्यु से दूर रह सकता है। ऐसे अनेक योगी हैं, जो इस विधि से तीन सौ या सात सौ वर्षों तक जीवित रहते हैं। भागवत में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वीर्यपात ही भयावह मृत्यु का कारण है। जो जितना ही विषयी होता है उतनी ही जल्दी उसकी मृत्यु होती है।
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