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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 26: प्रकृति के मूलभूत सिद्धान्त  »  श्लोक 60
 
 
श्लोक  3.26.60 
क्षुत्पिपासे तत: स्यातां समुद्रस्त्वेतयोरभूत् ।
अथास्य हृदयं भिन्नं हृदयान्मन उत्थितम् ॥ ६० ॥
 
शब्दार्थ
क्षुत्-पिपासे—भूख तथा प्यास; तत:—तब; स्याताम्—प्रकट हुए; समुद्र:—समुद्र; तु—तब; एतयो:—इनसे; अभूत्—उत्पन्न हुआ; अथ—तब; अस्य—विराट रूप का; हृदयम्—हृदय; भिन्नम्—प्रकट हुआ; हृदयात्—हृदय से; मन:—मन; उत्थितम्—प्रकट हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात भूख तथा प्यास की अनुभूतियाँ उत्पन्न हुईं और इनके साथ ही समुद्र का प्राकट्य हुआ। फिर हृदय प्रकट हुआ और हृदय के साथ-साथ मन प्रकट हुआ।
 
तात्पर्य
 समुद्र को पेट का अधिष्ठाता देव माना गया है, जहाँ से भूख तथा प्यास की अनुभूति उत्पन्न होती है। जब किसी को ठीक से भूख प्यास नहीं लगती तो आयुर्वेदिक उपचार में उस मनुष्य को समुद्र में स्नान करने की सलाह दी जाती है।
 
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