इस तरह जब देवता तथा विभिन्न इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव प्रकट हो चुके, तो उन सबों ने अपने-अपने उत्पत्ति स्थान को जगाना चाहा। किन्तु ऐसा न कर सकने के कारण वे विराट-पुरुष को जगाने के उद्देश्य से उनके शरीर में एक-एक करके पुन: प्रविष्ट हो गये।
तात्पर्य
भीतर सोते हुए अधिष्ठाता देव को जगाने के लिए मनुष्य को अपने ऐन्द्रिक कर्मों को बाहर से मोडक़र भीतर ले जाना होता है। अगले श्लोकों में विराट-पुरुष को जगाने के लिए जिन ऐन्द्रिक कर्मों की आवश्यकता होती है उनका सुन्दर वर्णन किया गया है।
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