त्वचम्—विराट-पुरुष की चमड़ी; रोमभि:—शरीर के ऊपर के रोओं से; ओषध्य:—जड़ी-बूटियों के अधिष्ठाता देव; न—नहीं; उदतिष्ठत्—उठा; तदा—तब; विराट्—विराट-पुरुष; रेतसा—वीर्य से; शिश्नम्—लिंग; आप:—जल-देव; तु—तब; न—नहीं; उदतिष्ठत्—उठा; तदा—तब; विराट्—विराट-पुरुष ।.
अनुवाद
त्वचा तथा जड़ी-बूटियों के अधिष्ठाता देवों ने शरीर के रोमों से त्वचा में प्रवेश किया, किन्तु तो भी विराट-पुरुष नहीं उठा। तब जल के अधिष्ठाता देव ने वीर्य के माध्यम से जननांग में प्रवेश किया, किन्तु विराट-पुरुष नहीं जागा।
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