श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 26: प्रकृति के मूलभूत सिद्धान्त  »  श्लोक 67
 
 
श्लोक  3.26.67 
विष्णुर्गत्यैव चरणौ नोदतिष्ठत्तदा विराट् ।
नाडीर्नद्यो लोहितेन नोदतिष्ठत्तदा विराट् ॥ ६७ ॥
 
शब्दार्थ
विष्णु:—भगवान् विष्णु; गत्या—गति से; एव—निस्सन्देह; चरणौ—दो पाँव; न—नहीं; उदतिष्ठत्—उठा; तदा—तब भी; विराट्—विराट-पुरुष; नाडी:—नाडिय़ाँ; नद्य:—नदियाँ नदी के देवता; लोहितेन—रक्त के द्वारा, संचरण की शक्ति से; न—नहीं; उदतिष्ठत्—हिला डुला; तदा—तो भी; विराट्—विराट-पुरुष ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् विष्णु ने गति की क्षमता के साथ उनके पाँवों में प्रवेश किया, किन्तु तब भी विराट-पुरुष ने खड़े होने से इनकार कर दिया। तब नदियों ने रक्त-नाडिय़ों तथा संचरण शक्ति के माध्यम से रक्त में प्रवेश किया, किन्तु तो भी विराट-पुरुष हिला डुला नहीं।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥