मन:—मन; अचिरात्—शीघ्र ही; स्यात्—हो सकता है; विरजम्—उद्वेगों से मुक्त; जित-श्वासस्य—जिसने श्वास पर विजय पा ली है; योगिन:—योगी का; वायु-अग्निभ्याम्—वायु तथा अग्नि से; यथा—जिस प्रकार; लोहम्—स्वर्ण; ध्मातम्—हवा किये जाने पर; त्यजति—मुक्त हो जाता है; वै—निश्चय ही; मलम्—अशुद्धि से ।.
अनुवाद
जो योगी ऐसे प्राणायाम का अभ्यास करते हैं, वे तुरन्त समस्त मानसिक उद्वेगों से उसी तरह मुक्त हो जाते हैं जिस प्रकार हवा की फुहार से अग्नि में रखा सोना सारी अशुद्धियों से रहित हो जाता है।
तात्पर्य
मन शुद्ध करने की इस विधि की संस्तुति भगवान् चैतन्य ने भी की है। उनका कहना है कि मनुष्य को हरे कृष्ण कीर्तन करना चाहिए। वे आगे कहते है कि परं विजयते “श्रीकृष्ण कीर्तन की जय हो।” कृष्ण के पवित्र नामों के कीर्तन की जय बोली जाती है, क्योंकि ज्यों ही कोई कीर्तन करना चालू करता है कि जमी हुई मैल से मन शुद्ध हो जाता है। चेतो-दर्पणमार्जनम्—भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के कीर्तन से मनुष्य के मन में एकत्र होने वाला मैल साफ हो जाता है। मनुष्य अपने मन को या तो प्राणायाम के द्वारा या कि कीर्तन विधि से शुद्ध कर सकता है, जिस प्रकार अग्नि में रखकर धौंकनी से धौंकने पर सोना शुद्ध हो जाता है।
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