योगी को चाहिए कि प्रेम में ड़ूबा हुआ भक्तिपूर्वक अपने अन्तरतम में भगवान् विष्णु के अट्टहास का ध्यान करे। उनका यह अट्टहास इतना मोहक है कि इसका सरलता से ध्यान किया जा सकता है। भगवान् के हँसते समय उनके छोटे-छोटे दाँत चमेली की कलियों जैसे दिखते हैं और उनके होठों की कान्ति के कारण गुलाबी प्रतीत होते हैं। एक बार अपना मन उनमें स्थिर करके, योगी को कुछ और देखने की कामना नहीं करनी चाहिए।
तात्पर्य
यहाँ पर संस्तुति की गई है कि योगी को चाहिए कि भगवान् की हँसी का भलीभाँति अध्ययन करके उनके अट्टहास का चिन्तन करे। मुसकान, हँसी, मुख, होठ, दाँत के ध्यान के ये विशेष विवरण स्पष्ट रूप से यह इंगित करते हैं कि ईश्वर निराकार नहीं है। यहाँ पर बताया गया है कि मनुष्य को चाहिए कि विष्णु की हँसी का ध्यान करे। इसके अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं जिससे भक्त का हृदय स्वच्छ हो सके। भगवान् विष्णु की हँसी की विशेषता यह है कि जब वे हँसते हैं, तो उनके कुन्दकली जैसे छोटे-छोटे दाँत उनके गुलाबी होठों के प्रतिबिम्ब से लाल-लाल हो जाते हैं। यदि योगी अपने हृदय में भगवान् के सुन्दर मुखमण्डल को बसा सके तो उसे पूर्ण संतोष प्राप्त होगा। दूसरे शब्दों में, जब कोई भगवान् की सुन्दरता को अपने अन्त: में देखता है, तो उसे भौतिक आकर्षण नहीं सताते।
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