श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 29: भगवान् कपिल द्वारा भक्ति की व्याख्या  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.29.22 
यो मां सर्वेषु भूतेषु सन्तमात्मानमीश्वरम् ।
हित्वार्चां भजते मौढ्याद्भस्मन्येव जुहोति स: ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो; माम्—मुझको; सर्वेषु—सभी; भूतेषु—जीवों में; सन्तम्—उपस्थित होकर; आत्मानम्—परमात्मा; ईश्वरम्—परमात्मा को; हित्वा—उपेक्षा करके; अर्चाम्—विग्रह को; भजते—पूजता है; मौढ्यात्—अज्ञानवश; भस्मनि—राख में; एव—केवल; जुहोति—आहुति डालता है; स:—वह ।.
 
अनुवाद
 
 जो मन्दिरों में भगवान् के विग्रह का पूजन करता है, किन्तु यह नहीं जानता कि परमात्मा रूप में परमेश्वर प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हैं, वह अज्ञानी है और उसकी तुलना उस व्यक्ति से की जाती है, जो राख में आहुतियाँ डालता है।
 
तात्पर्य
 यहाँ स्पष्ट उल्लेख है कि भगवान् परमात्मा के पूर्ण अंश रूप में समस्त जीवों में विद्यमान हैं। जीवों के कुल मिलाकर ८४,००,००० विभिन्न प्रकार के शरीर हैं और पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् प्रत्येक शरीर में व्यष्टि आत्मा तथा परमात्मा के रूप में निवास कर रहा है। चूँकि प्रत्येक आत्मा परमेश्वर का अंश है, इस तरह भगवान् हर शरीर में वास करता है और परमात्मा के रूप में वह साक्षी के रूप में भी रहता है। दोनों ही तरह से प्रत्येक जीव में ईश्वर की उपस्थिति अनिवार्य है। अत: जो लोग अपने को किसी धार्मिक सम्प्रदाय से सम्बद्ध मानते हैं, किन्तु हर जीव में तथा अन्यत्र सर्वत्र भगवान् के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते, वे तमो गुण के आधीन हैं।

यदि भगवान् की सर्वव्यापकता के इस प्राथमिक ज्ञान के बिना कोई मन्दिर, मसजिद या गिरजाघर के अनुष्ठानों में ही अपने आपको लगाता है, तो यह उसी तरह है जैसे कोई अग्नि में घी की आहुति न डालकर राख में डाल रहा हो। किन्तु यदि वैदिक मन्त्र तथा अन्य सारी परिस्थितियाँ अनुकूल हों और घी को राख में डाल दिया जाय तो ऐसा यज्ञ व्यर्थ होता है। दूसरे शब्दों में, भक्त को चाहिए कि किसी जीव की अवहेलना न करे। भक्त को जानना चाहिए कि जीव कितना ही तुच्छ क्यों न हो, भले ही वह चींटी हो, सबमें ईश्वर उपस्थित है, अत: प्रत्येक जीव के साथ सदय व्यवहार होना चाहिए और उसके साथ किसी प्रकार की हिंसा नहीं की जानी चाहिए। आधुनिक सभ्य समाज में नियमित कसाईघर चल रहे हैं और वे विशेष प्रकार के धार्मिक सिद्धान्त से समर्थित हैं। किन्तु प्रत्येक जीव में ईश्वर की उपस्थिति को जाने बिना मानव सभ्यता की कोई भी तथाकथित प्रगति, चाहे आध्यात्मिक हो या भौतिक, तामसी समझी जाएगी।

 
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