इन्द्रियवृत्ति (अनुभूति) से युक्त जीवों में से जिन्होंने स्वाद की अनुभूति विकसित कर ली है वे स्पर्श अनुभूति विकसित किये हुए जीवों से श्रेष्ठ हैं। इनसे भी श्रेष्ठ वे हैं जिन्होंने गंध की अनुभूति विकसति कर ली है और इनसे भी श्रेष्ठ वे हैं जिनकी श्रवणेन्द्रिय विकसित है।
तात्पर्य
यद्यपि पाश्चात्य विद्वान मानते हैं कि विकासवाद की स्थापना सर्वप्रथम डार्विन द्वारा हुई, किन्तु नृतत्व विज्ञान कोई नया नहीं है। विकास-प्रक्रिया आज से ५,००० वर्ष पूर्व लिखे गये भागवत के पहले से ज्ञात थी। कपिल मुनि के वचन प्रमाण हैं। जो सृष्टि के प्रारम्भ में विद्यमान थे। यह ज्ञान वैदिक काल से चला आ रहा है और सारा विकास क्रम वैदिक साहित्य में प्राप्त है; क्रमिक विकास का सिद्धान्त या नृतत्व विज्ञानविदों के लिए नया नहीं है।
यहाँ यह कहा गया है कि वृक्षों में भी विकास-प्रक्रिया होती है, विभिन्न प्रकार के वृक्षों में स्पर्श का अनुभव पाया जाता है। यह कहा गया है कि वृक्षों की अपेक्षा मछलियाँ श्रेष्ठ हैं, क्योंकि उनमें स्वादेन्द्रिय विकसित है। मछलियों से श्रेष्ठ मधुमक्खियाँ हैं, जिनमें घ्राणशक्ति विकसित है और इनसे भी श्रेष्ठ सर्प है जिनमें सुनने की शक्ति विकसित है। रात्रि के अंधकार में सर्प मेंढक की लुभावनी ध्वनि सुनकर अपना भोज्य प्राप्त कर सकता है। साँप समझ सकता है कि, “वहाँ पर मेंढक है” और केवल उसकी ध्वनि से वह उसे पकड़ लेता है। यह उदाहरण कभी-कभी उन व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त होता है, जो मृत्यु के लिए शब्दोच्चार करते हैं। मनुष्य के मेंढक जैसी जीभ हो सकती है, जो शब्द उत्पन्न कर सकती है, किन्तु ऐसी ध्वनि तो मृत्यु का आवाहन बनती है। जीभ तथा ध्वनि का सर्वोत्तम उपयोग यही है कि हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे महामन्त्र का कीर्तन किया जाय। इससे क्रूर काल के हाथों से रक्षा हो सकेगी।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.