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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 29: भगवान् कपिल द्वारा भक्ति की व्याख्या  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.29.30 
रूपभेदविदस्तत्र ततश्चोभयतोदत: ।
तेषां बहुपदा: श्रेष्ठाश्चतुष्पादस्ततो द्विपात् ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
रूप-भेद—रूप में अन्तर; विद:—जानने वाले; तत्र—उनकी उपेक्षा; तत:—उनसे; —तथा; उभयत:—दोनों जबड़ों में; दत:—दाँतों से युक्त; तेषाम्—उनमें से; बहु-पदा:—अनेक पाँवों वाले; श्रेष्ठा:—श्रेष्ठ; चतु:-पाद:—चौपाया; तत:—उनसे; द्वि-पात्—दो पाँव वाले ।.
 
अनुवाद
 
 ध्वनि सुन सकने वाले प्राणियों की अपेक्षा वे श्रेष्ठ हैं, जो एक रूप तथा दूसरे रूप में अन्तर जान लेते हैं। इनसे भी अच्छे वे हैं जिनके ऊपरी तथा निचले दाँत होते हैं और इनसे भी श्रेष्ठ अनेक पाँव वाले जीव हैं। इनसे भी श्रेष्ठ चौपाये और चौपाये से भी बढक़र मनुष्य हैं।
 
तात्पर्य
 कहा जाता है कि कौवे जैसे कुछ पक्षी एक-दूसरे रूप में अन्तर कर सकते हैं। बर्रे जैसे जीव जिनके पैर होते हैं, वे बिना पैर वाले वृक्षों तथा वनस्पतियों से श्रेष्ठ हैं। चार पैर वाले पशु अनेक पैर वाले जीवों से श्रेष्ठ हैं। पशुओं से भी श्रेष्ठ मनुष्य हैं, क्योंकि उसके केवल दो पैर होते हैं।
 
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