ऐसा पूर्ण भक्त प्रत्येक जीव को प्रणाम करता है, क्योंकि उसका दृढ़ विश्वास है कि भगवान् प्रत्येक जीव के शरीर के भीतर परमात्मा या नियामक के रूप में प्रविष्ट रहते हैं।
तात्पर्य
जैसाकि ऊपर कहा गया है, पूर्ण भक्त भूलकर भी कभी यह नहीं सोचता कि चूँकि प्रत्येक जीव के शरीर के भीतर परमात्मा रूप में भगवान् प्रविष्ट हैं, अत: हर जीव भगवान् हो गया है। यह मूर्खता है। मान लो कि कोई व्यक्ति कमरे में प्रविष्ट हुआ है, इसका अर्थ यह नहीं होता कि वह कमरा वह व्यक्ति बन गया। इसी प्रकार परमेश्वर समस्त ८४,००,००० योनियों के शरीर में प्रविष्ट हैं, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं होता कि इनमें से प्रत्येक शरीर भगवान् हो गया है। किन्तु चूँकि परमेश्वर उपस्थित है, अत: शुद्ध भक्त प्रत्येक शरीर को भगवान् का मन्दिर मान लेता है और चूँकि भक्त ऐसे हर मन्दिर को पूर्ण चेतना में रहकर प्रणाम करता है, अत: वह प्रत्येक जीव को भगवान् के परिप्रेक्ष्य में प्रणाम करता है। मायावादी चिन्तकों का यह सोचना गलत है कि निर्धन व्यक्ति (दरिद्र) के शरीर में प्रविष्ट रहने के कारण भगवान् दरिद्र-नारायण हो गये। ये नास्तिकों तथा अभक्तों के निन्दनीय वक्तव्य हैं।
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