समस्त यज्ञों के भोक्ता भगवान् विष्णु कालस्वरूप हैं तथा समस्त स्वामियों के स्वामी हैं। वे प्रत्येक के हृदय में प्रविष्ट करने वाले हैं, वे सबके आश्रय हैं और प्रत्येक जीव का दूसरे जीव के द्वारा संहार कराने का कारण हैं।
तात्पर्य
इस श्लोक में भगवान् विष्णु का स्पष्ट वर्णन हुआ है। वे परम भोक्ता हैं और अन्य सभी उनके दास रूप में कार्य कर रहे हैं। जैसाकि चैतन्य-चरितामृत (आदि ५.१४) में कहा गया है—एकले ईश्वर कृष्ण—विष्णु एकमात्र ईश्वर हैं, आर सब भृत्य—अन्य सब उनके दास हैं। ब्रह्मा, शिव तथा अन्य देवता हैं। यही विष्णु प्रत्येक के ह्रदय में परमात्मा रूप में प्रवेश करते हैं और दूसरे जीव के द्वारा जीव का संहार करते हैं।
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