कृपया काल का भी वर्णन करें जो आपके स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है और जिसके प्रभाव से सामान्य जन पुण्यकर्म करने में प्रवृत्त होते हैं।
तात्पर्य
सौभाग्य के पथ तथा अज्ञान के गहन क्षेत्र के मार्ग के विषय में कोई कितना ही अज्ञानी क्यों न रहे, किन्तु प्रत्येक व्यक्ति शाश्वत काल के प्रभाव से परिचित है, जो हमारे समस्त कर्मों के फल को निगल जाने वाला है। ज्योंही शरीर जन्म लेता है उस पर काल का प्रभाव चालू हो जाता है। शरीर के जन्म की तिथि से ही मृत्यु का प्रभाव कार्य करने लगता है; आयु बढऩे के साथ ही शरीर पर काल का प्रभाव बढ़ता जाता है। यदि मनुष्य तीस या पचास वर्ष का है, तो काल उसकी जीवन अवधि का तीस या पचास वर्ष निगल चुका होता है।
प्रत्येक व्यक्ति जीवन की उस अन्तिम अवस्था से अवगत है जब उसे मृत्यु के क्रूर हाथों में जाना होगा, किन्तु कुछ लोग अपनी आयु तथा परिस्थितियों पर विचार करके काल के प्रभाव से चिन्तित होकर स्वयं को पुण्यकर्मों में प्रवृत्त करते हैं, जिससे भविष्य में उन्हें किसी निम्न परिवार या पशुयोनि में न जाना पड़े। सामान्यतया लोग इन्द्रिय सुख के प्रति आसक्त रहते हैं, अत: वे स्वर्गलोक जाना चाहते हैं। फलत: वे किसी परोपकार या अन्य पुण्य कार्य में लग जाते हैं, किन्तु जैसाकि भगवद्गीता में कहा गया है जन्म तथा मृत्यु के चक्र से किसी को छुटकारा नहीं मिल पाता भले ही कोई सर्वोच्च लोक ब्रह्मलोक क्यों न चला जाय, क्योंकि काल का प्रभाव इस भौतिक जगत में सर्वत्र उपस्थित है। हाँ, आध्यात्मिक जगत में काल का कोई प्रभाव नहीं होता।
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