एक बार यदुवंशी तथा भोजवंशी राजकुमारों की क्रीड़ाओं से महामुनिगण क्रुद्ध हो गये तो उन्होंने भगवान् की इच्छानुसार उन राजकुमारों को शाप दे दिया।
तात्पर्य
भगवान् के वे संगी जो कि यदु तथा भोज वंशों के राजकुमारों की भूमिका निभा रहे थे सामान्य जीव न थे। ऐसा सम्भव नहीं कि वे किसी सन्त पुरुष या मुनि का अपमान करते या मुनिगण जो कि भगवान् के शुद्ध भक्त थे पवित्र यदु या भोज वंशों में उत्पन्न राजकुमारों की किसी प्रकार की क्रीड़ा पर क्रुद्ध होते, क्योंकि स्वयं भगवान् इन्हीं के वंशज के रूप में अवतरित हुए थे। मुनियों द्वारा राजकुमारों का शापित होना क्रोध-प्रदर्शन के लिए भगवान् की एक दिव्य लीला थी। राजकुमारों को इसलिए शाप दिया गया था कि लोग जान सकें कि भगवान् के वे वंशज भी भगवान् के महान् भक्तों के कोपभाजन हो सकते हैं, जिन्हें प्रकृति के किसी भी कार्य द्वारा कभी भी विनष्ट नहीं किया जा सकता था। इसलिए मनुष्य को बड़ी सावधानी बरतनी चाहिए कि वह भगवद्भक्त के चरणों पर कोई अपराध न करे।
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