सुतम्—पुत्र को; मृधे—युद्ध में; खम्—आकाश; वपुषा—अपने शरीर से; ग्रसन्तम्—निगलते हुए; दृष्ट्वा—देखकर; सुनाभ— सुदर्शन चक्र से; उन्मथितम्—मार डाला; धरित्र्या—पृथ्वी द्वारा; आमन्त्रित:—प्रार्थना किये जाने पर; तत्-तनयाय—नरकासुर के पुत्र को; शेषम्—उससे लिया हुआ; दत्त्वा—लौटा कर; तत्—उसके; अन्त:-पुरम्—घर के भीतर; आविवेश—घुसे ।.
अनुवाद
धरित्री अर्थात् पृथ्वी के पुत्र नरकासुर ने सम्पूर्ण आकाश को निगलना चाहा जिसके कारण युद्ध में वह भगवान् द्वारा मार डाला गया। तब उसकी माता ने भगवान् से प्रार्थना की। इससे नरकासुर के पुत्र को राज्य लौटा दिया गया और भगवान् उस असुर के घर में प्रविष्ट हुए।
तात्पर्य
अन्य पुराणों में यह कहा गया है कि नरकासुर भगवान् द्वारा उत्पन्न धरित्री पृथ्वी का पुत्र था। किन्तु वह एक अन्य असुर बाण की कुसंगति के कारण असुर बन गया। नास्तिक को असुर कहा जाता है और यह एक तथ्य है कि अच्छे माता पिता से उत्पन्न व्यक्ति भी कुसंगति से असुर बन सकता है। किसी का जन्म ही सदैव अच्छाई की कसौटी नहीं है। जब तक कोई व्यक्ति अच्छी संगति की शिक्षा नहीं पाता तब तक वह अच्छा नहीं बन सकता।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.