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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 3: वृन्दावन से बाहर भगवान् की लीलाएँ  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  3.3.9 
तास्वपत्यान्यजनयदात्मतुल्यानि सर्वत: ।
एकैकस्यां दश दश प्रकृतेर्विबुभूषया ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
तासु—उनके; अपत्यानि—सन्तानें; अजनयत्—उत्पन्न किया; आत्म-तुल्यानि—अपने ही समान; सर्वत:—सभी तरह से; एक- एकस्याम्—उनमें से हर एक में; दश—दस; दश—दस; प्रकृते:—अपना विस्तार करने के लिए; विबुभूषया—ऐसी इच्छा करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 अपने दिव्य स्वरूपों के अनुसार ही अपना विस्तार करने के लिए भगवान् ने उनमें से हर एक से ठीक अपने ही गुणों वाली दस-दस सन्तानें उत्पन्न कीं।
 
 
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