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श्लोक 3.3.9  |
तास्वपत्यान्यजनयदात्मतुल्यानि सर्वत: ।
एकैकस्यां दश दश प्रकृतेर्विबुभूषया ॥ ९ ॥ |
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शब्दार्थ |
तासु—उनके; अपत्यानि—सन्तानें; अजनयत्—उत्पन्न किया; आत्म-तुल्यानि—अपने ही समान; सर्वत:—सभी तरह से; एक- एकस्याम्—उनमें से हर एक में; दश—दस; दश—दस; प्रकृते:—अपना विस्तार करने के लिए; विबुभूषया—ऐसी इच्छा करते हुए ।. |
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अनुवाद |
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अपने दिव्य स्वरूपों के अनुसार ही अपना विस्तार करने के लिए भगवान् ने उनमें से हर एक से ठीक अपने ही गुणों वाली दस-दस सन्तानें उत्पन्न कीं। |
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