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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.30.1 
कपिल उवाच
तस्यैतस्य जनो नूनं नायं वेदोरुविक्रमम् ।
काल्यमानोऽपि बलिनो वायोरिव घनावलि: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
कपिल: उवाच—कपिल ने कहा; तस्य एतस्य—इसी काल का; जन:—व्यक्ति; नूनम्—निश्चय ही; —नहीं; अयम्—यह; वेद—जानता है; उरु-विक्रमम्—महान् पराक्रम; काल्यमान:—दूर ले जाया जाकर; अपि—यद्यपि; बलिन:—शक्तिशाली; वायो:—हवा द्वारा; इव—सदृश; घन—बादलों का; आवलि:—समूह ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् ने कहा : जिस प्रकार बादलों का समूह वायु के शक्तिशाली प्रभाव से परिचित नहीं रहता उसी प्रकार भौतिक चेतना में संलग्न व्यक्ति काल की उस महान् शक्ति से परिचित नहीं रहता, जिसके द्वारा उसे ले जाया जा रहा है।
 
तात्पर्य
 महान् राजनीतिज्ञ पंडित चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई लाखों डालर भी खर्च करने को तैयार हो तो भी एक क्षण का समय (काल) वापस नहीं पाया जा सकता। अमूल्य समय को बर्बाद करने से अकल्पनीय क्षति होती है। मनुष्य के पास जितना समय है उसे भौतिक या आध्यात्मिक कार्यों में सावधानी के साथ लगाना चाहिए। बद्धजीव शरीर विशेष में एक निश्चित काल तक रहता है और उसी अल्पावधि में मनुष्य को कृष्णभक्ति पूरी करके काल के प्रभाव से छुटकारा पाना है। किन्तु दुर्भाग्यवश जो कृष्णभावनामृत में अपने को नहीं लगाते, वे अनजाने ही काल की प्रबल शक्ति के द्वारा उसी प्रकार बहा ले जाये जाते हैं जिस प्रकार वायु के द्वारा बादल।
 
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