कुटुम्ब—अपना परिवार; भरण—पालन करने में; अकल्प:—असमर्थ; मन्द-भाग्य:—अभागा; वृथा—व्यर्थ ही; उद्यम:—जिसका प्रयास; श्रिया—सौंदर्य, धन; विहीन:—रहित; कृपण:—कंजूस; ध्यायन्—शोक करता हुआ; श्वसिति—आहें भरता है; मूढ—मोहग्रस्त; धी:—बुद्धि वाला ।.
अनुवाद
जब वह अभागा अपने परिवार वालों के भरण-पोषण में असफल होकर समस्त सौन्दर्य से विहीन हो जाता है, तो वह सदैव लम्बी-लम्बी आहें भरता हुआ अपनी विफलता के विषय में सोचता है।
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