श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.30.16 
वायुनोत्क्रमतोत्तार: कफसंरुद्धनाडिक: ।
कासश्वासकृतायास: कण्ठे घुरघुरायते ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
वायुना—हवा के द्वारा; उत्क्रमता—बाहर निकलने से; उत्तार:—आँखें; कफ—कफ से; संरुद्ध—सँटी हुई; नाडिक:—श्वास नली; कास—खाँसी; श्वास—साँस लेना; कृत—किया हुआ; आयास:—कठिनाई; कण्ठे—गले में; घुर-घुरायते—घुर-घुर का शब्द करता है ।.
 
अनुवाद
 
 उस रुग्ण अवस्था में, भीतर से वायु के दबाब के कारण उसकी आँखें बाहर निकल आती हैं और उसकी ग्रंथियाँ कफ से भर जाती हैं। उसे साँस लेने में कठिनाई होती है और गले के भीतर से घुर-घुर की आवाज निकलती है।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥