यम् यम्—जो कुछ, जिस जिस; अर्थम्—वस्तु को; उपादत्ते—प्राप्त करता है; दु:खेन—कठिनाई से; सुख-हेतवे— सुख के लिए; तम् तम्—उस उस को; धुनोति—नष्ट कर देता है; भगवान्—भगवान्; पुमान्—व्यक्ति; शोचति— शोक करता है; यत्-कृते—जिस कारण से ।.
अनुवाद
तथाकथित सुख के लिए भौतिकतावादी द्वारा जो-जो वस्तुएँ अत्यन्त कष्ट तथा परिश्रम से अर्जित की जाती हैं उन-उन को कालरूप परम पुरुष नष्ट कर देता है और इसके कारण बद्धजीव उन के लिए शोक करता है।
तात्पर्य
भगवान् के प्रतिनिधि-रूप काल का मुख्य कार्य सभी वस्तुओं को नष्ट करना है। भौतिकतावादी लोग भौतिक चेतना के कारण आर्थिक विकास के नाम पर न जाने कितने प्रकार की वस्तुएँ उत्पन्न करने में लगे हुए हैं। वे सोचते हैं कि लोगों की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करके वे सुखी होंगे, किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि कालक्रम से उनके द्वारा उत्पन्न की गई सारी वस्तुएँ नष्ट हो जाएँगी। इतिहास हमें बताता है कि इस भूमण्डल पर न जाने कितने शक्तिशाली साम्राज्यों का निर्माण कितने कष्ट तथा अध्यवसाय के फलस्वरुप हुआ था, किन्तु काल के साथ वे सारे के सारे नष्ट हो गये। तो भी ये मूर्ख भौतिकतावादी यह नहीं समझ पाते कि भौतिक आवश्यकता की वस्तुएँ उत्पन्न करने में वे समय का ही अपव्यय कर रहे हैं, क्योंकि ये सारी वस्तुएँ काल के साथ नष्ट हो जाएँगी। शक्ति का यह अपव्यय जनसमूह के अज्ञान के कारण है, जो यह नहीं जानता कि मनुष्य सनातन हैं और उनका कार्य भी सनातन है। वे यह नहीं जानते कि किसी एक प्रकार के शरीर में जीवन की अवधि शाश्वत यात्रा की चमक मात्र है। इस तथ्य को न जानने के कारण वे जीवन की इस क्षणिक चमक को सब कुछ मान बैठते हैं और अपना समय आर्थिक परिस्थितियों के सुधारने में नष्ट कर देते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.