इस प्रकार यमराज के सिपाहियों द्वारा ले जाये जाते समय उसे दबाया-कुचला जाता है और उनके हाथों में वह काँपता रहता है। रास्ते में जाते समय उसे कुत्ते काटते हैं और उसे अपने जीवन के पापकर्म याद आते हैं। इस प्रकार वह अत्यधिक दुखी रहता है।
तात्पर्य
इस श्लोक से ऐसा प्रतीत होता है कि इस लोक से यमलोक जाते समय, यमराज के दूतों द्वारा बन्दी बनाये गये अपराधी को मार्ग में कुत्ते मिलते हैं, जो भूकते हैं और उसे इन्द्रियतृप्ति के अपराध कर्मों का स्मरण कराने के लिए काटते हैं। भगवद्गीता में कहा गया है कि जब कोई इन्द्रियतृप्ति की इच्छा से उन्मत्त होता है, तो वह अन्धा हो जाता है और सारा ज्ञान खो देता है। वह सब कुछ भूल जाता है। कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञाना:। जब कोई इन्द्रियतृप्ति के प्रति अत्यधिक अनुरक्त होता है, तो उसकी सारी बुद्धि जाती रहती है और वह यह भूल जाता है कि उसको इसका परिणाम भोगना पड़ेगा। यहाँ पर उसे यमराज द्वारा पाले गये कुत्तों से अपने इन्द्रियतृप्ति के कार्यों को स्मरण करने का अवसर मिलता है। जब हम स्थूल शरीर में रहते हैं, तो आजकल के सरकारी नियमों द्वारा भी इन्द्रियतृप्ति के ऐसे कार्यों को बढ़ावा मिलता है। सारे विश्व में प्रत्येक राज्य की सरकारें ऐसे कर्मों को गर्भनिरोध के रूप में प्रोत्साहन देती है। स्त्रियों को गोलियाँ दी जाती हैं और गर्भपात कराने के लिए अस्पतालों में जाने की छूट है। वस्तुत: विषयी जीवन अच्छी सन्तान को जन्म देने के लिए है, किन्तु लोगों को अपनी इन्द्रियों पर किसी प्रकार का संयम न होने के कारण तथा इन्द्रियों को वश में करने की शिक्षा देने वाली संस्थाओं के न होने से लोग इन्द्रियतृप्ति के अपराधों के शिकार होते हैं और वे मृत्यु के पश्चात् जिस प्रकार से दण्डित होते हैं उसका वर्णन भागवत के इन पृष्ठों में हुआ है।
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