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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.30.23 
तत्र तत्र पतञ्छ्रान्तो मूर्च्छित: पुनरुत्थित: ।
पथा पापीयसा नीतस्तरसा यमसादनम् ॥ २३ ॥
 
शब्दार्थ
तत्र तत्र—जहाँ तहाँ; पतन्—गिरते हुए; श्रान्त:—थका हुआ; मूर्च्छित:—बेहोश; पुन:—फिर से; उत्थित:—उठते हुए; पथा—रास्ते में; पापीयसा—अत्यन्त अशुभ; नीत:—लाया गया; तरसा—तेजी से; यम-सादनम्—यमराज के सामने ।.
 
अनुवाद
 
 यमराज के धाम के मार्ग पर वह थकान से गिरता-पड़ता जाता है और कभी-कभी अचेत हो जाता है, किन्तु उसे पुन: उठने के लिए बाध्य किया जाता है। इस प्रकार उसे तेजी से यमराज के समक्ष लाया जाता है।
 
 
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