श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.30.24 
योजनानां सहस्राणि नवतिं नव चाध्वन: ।
त्रिभिर्मुहूर्तैर्द्वाभ्यां वा नीत: प्राप्नोति यातना: ॥ २४ ॥
 
शब्दार्थ
योजनानाम्—योजनों की; सहस्राणि—हजार; नवतिम्—नब्बे; नव—नौ; च—तथा; अध्वन:—दूरी से; त्रिभि:— तीन; मुहूर्तै:—क्षणों में; द्वाभ्याम्—दो; वा—अथवा; नीत:—लाया गया; प्राप्नोति—पाता है; यातना:—दण्ड ।.
 
अनुवाद
 
 इस तरह से ९९ हजार योजन की दूरी उसे दो या तीन पलों में पार करनी होती है और फिर तुरन्त उसे घोर यातना दी जाती है, जिसे सहना पड़ता है।
 
तात्पर्य
 एक योजन आठ मील के बराबर होता है, अत: उसे लम्बा रास्ता तय करना होता है, जो लगभग ७,९२,००० मील है। इतनी लम्बी दूरी दो-तीन क्षणों में पार करनी होती है। सिपाही सूक्ष्म शरीर को ढक लेते हैं जिससे जीव इतनी लम्बी दूरी को शीघ्र ही तय कर ले और साथ ही यातनाएँ सहता चले। यह आवरण, यद्यपि भौतिक है, किन्तु ऐसे सूक्ष्म तत्त्वों का होता है कि भौतिकतावादी विज्ञानी पता नहीं लगा पाते कि ये आवरण किस वस्तु के बने हैं। ७,९२,००० मील की यात्रा कुछ ही पलों में पूरी कर लेना आधुनिक अन्तरिक्ष यात्रियों को भी असमंजस में डालने वाला है। अभी तक वे १८,००० मील प्रति घण्टे की चाल से यात्रा कर चुके हैं, किन्तु यहाँ हम देखते हैं कि अपराधी कुछ ही सेकंडों में ७,९२,००० मील की यात्रा करता है और यह कोई आध्यात्मिक विधि नहीं होती, भौतिक होती है।
 
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