हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.30.27 
कृन्तनं चावयवशो गजादिभ्यो भिदापनम् ।
पातनं गिरिशृङ्गेभ्यो रोधनं चाम्बुगर्तयो: ॥ २७॥
 
शब्दार्थ
कृन्तनम्—काट करके; —तथा; अवयवश:—अंग प्रति अंग; गज-आदिभ्य:—हाथी आदि से; भिदापनम्— चिरवाया जाकर; पातनम्—नीचे गिराकर; गिरि—पहाडिय़ों की; शृङ्गेभ्य:—चोटियों से; रोधनम्—घेर कर; — तथा; अम्बु-गर्तयो:—जल में या गुफा में ।.
 
अनुवाद
 
 फिर उसके अंग-प्रत्यंग काट डाले जाते हैं और उसे हाथियों से चिरवा दिया जाता है। उसे पर्वत की चोटियों से नीचे गिराया जाता है और फिर जल में या गुफा में बन्दी बना लिया जाता है।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥