श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.30.28 
यास्तामिस्रान्धतामिस्रा रौरवाद्याश्च यातना: ।
भुङ्क्ते नरो वा नारी वा मिथ: सङ्गेन निर्मिता: ॥ २८ ॥
 
शब्दार्थ
या:—जो; तामिस्र—नरक का नाम; अन्ध-तामिस्रा:—एक नरक; रौरव—एक नरक; आद्या:—इत्यादि; च—तथा; यातना:—यातनाएँ, दण्ड; भुङ्क्ते—भोगता है; नर:—मनुष्य; वा—अथवा; नारी—स्त्री; वा—अथवा; मिथ:— पारस्परिक; सङ्गेन—संगति से; निर्मिता:—बनाये गये ।.
 
अनुवाद
 
 जिन पुरुषों तथा स्त्रियों का जीवन अवैध यौनाचार में बीतता है उन्हें तामिस्र, अन्धतामिस्र तथा रौरव नामक नरकों में नाना प्रकार की यातनाएँ दी जाती हैं।
 
तात्पर्य
 भौतिकतावादी जीवन विषयी जीवन पर आधारित है। उन समस्त भौतिकतावादी लोगों का जीवन, जो जीवन-संघर्ष में नाना प्रकार की यातनाएँ भोग रहे हैं, कामवासना पर आधारित है। अत: वैदिक सभ्यता में केवल सीमित रूप से विषयी-जीवन की अनुमति दी गई है। यह जीवन विवाहित दम्पति युगल के लिए सन्तानोत्पत्ति के लिए है। किन्तु जब अवैध इन्द्रियतृप्ति के लिए विषयी जीवन का उपयोग किया जाता है, तो स्त्री तथा पुरुष दोनों को इसी संसार में या मरने के बाद कठोर यातना सहनी पड़ती है। इस लोक में उन्हें सिफलिस तथा गोनोरिया जैसे रोगों द्वारा दण्डित होना पड़ता है और अगले जीवन में उन्हें अनेक नारकीय यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं जैसाकि यहाँ पर वर्णन हुआ है। भगवद्गीता के प्रथम अध्याय में अवैध विषयी जीवन की अत्यधिक भर्त्सना की गई है और यह कहा गया है कि जो इस प्रकार से सन्तान उत्पन्न करते हैं, वे नरक को जाते हैं। यहाँ पर भागवतम् में इसकी पुष्टि की गई है कि ऐसे अपराधों को तामिस्र, अन्धतामिस्र तथा रौरव नरकों में जीवन बिताना पड़ता है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥