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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.30.30 
एवं कुटुम्बं बिभ्राण उदरम्भर एव वा ।
विसृज्येहोभयं प्रेत्य भुङ्क्ते तत्फलमीद‍ृशम् ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; कुटुम्बम्—परिवार को; बिभ्राण:—पालन करने वाला; उदरम्—पेट को; भर:—भरण करने वाला; एव—केवल; वा—अथवा; विसृज्य—त्याग कर; इह—यहाँ; उभयम्—दोनों; प्रेत्य—मृत्यु के बाद; भुङ्क्ते— भोगता है; तत्—उसका; फलम्—फल; ईदृशम्—ऐसा ।.
 
अनुवाद
 
 इस शरीर को त्यागने के पश्चात् वह व्यक्ति जो पापकर्मों द्वारा अपना तथा अपने परिवार के सदस्यों का पालन-पोषण करता है नारकीय जीवन बिताता है और उसके साथ उसके परिवार वाले भी।
 
तात्पर्य
 आधुनिक सभ्यता की यही भूल है कि इसमें मनुष्य अगले जीवन में विश्वास नहीं करता। किन्तु वह विश्वास करे अथवा न भी करे तो भी अगला जीवन होता है और यदि कोई वेद तथा पुराण जैसे शास्त्रों से सम्मत उत्तरदायित्वपूर्ण जीवन नहीं बिताता तो उसे कष्ट भोगना पड़ता है। मनुष्य से निम्न योनियाँ अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं होती, क्योंकि उन्हें एक निश्चित विधि से कर्म करना होता है, किन्तु मानवीय चेतना वाले विकसित जीवन में, यदि कोई अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी नहीं बनता तो निश्चय ही उसे यहाँ पर वर्णित विधि के अनुसार नारकीय जीवन बिताना होगा।
 
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