श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.30.31 
एक: प्रपद्यते ध्वान्तं हित्वेदं स्वकलेवरम् ।
कुशलेतरपाथेयो भूतद्रोहेण यद्भृतम् ॥ ३१ ॥
 
शब्दार्थ
एक:—अकेला; प्रपद्यते—प्रवेश करता है; ध्वान्तम्—अन्धकार; हित्वा—छोडक़र; इदम्—यह; स्व—अपना; कलेवरम्—शरीर; कुशल-इतर—पाप; पाथेय:—सम्बल, रास्ते का खर्च; भूत—अन्य जीवों की; द्रोहेण—क्षति द्वारा; यत्—जो शरीर; भृतम्—पाला गया ।.
 
अनुवाद
 
 इस शरीर को त्याग कर वह अकेला नरक के अंधतम भागों में जाता है और अन्य जीवों के साथ ईर्ष्या करके उसने जो धन कमाया था वही पाथेय के रूप में उसके साथ जाता है।
 
तात्पर्य
 जब मनुष्य अनुचित साधनों से धन कमाकर उस धन से अपने परिवार का तथा अपना पालन करता है, तो वह धन यद्यपि परिवार के कई सदस्यों द्वारा भोगा जाता है, किन्तु नरक तो उसे अकेले ही जाना होता है। जो व्यक्ति धन कमाकर या दूसरे की स्पर्धा करके जीवन का आनन्द उठाता है और जो अपने परिवार तथा मित्रों के साथ आनन्द उठाता है, उसे अकेले ही ऐसे हिंसक तथा अवैध जीवन के पापकर्मों का फल भोगना पड़ेगा। उदाहरणार्थ, यदि कोई मनुष्य किसी को मार कर कुछ धन प्राप्त करता है और उस धन से अपने परिवार का पोषण करता है, तो जो इस कमाये हुए काले धन का भोग करते हैं, वे भी अंशत: उत्तरदायी हैं और उन्हें भी नरक भेजा जाता है, किन्तु जो प्रमुख होता है उसे विशेष रूप से दण्डित किया जाता है। भौतिक भोग का फल यही है कि पापफल ही उसके हाथ लगता है, धन नहीं। उसके द्वारा कमाया धन इसी संसार में रह जाता है और वह अपने साथ केवल कर्मफल ले जाता है।

इस संसार में भी यदि कोई मनुष्य किसी व्यक्ति की हत्या करके कुछ धन प्राप्त करता है, तो उसके परिवार को फाँसी नहीं दी जाती, यद्यपि उसके सदस्य पाप से दूषित रहते हैं। किन्तु जो व्यक्ति हत्या करता है और परिवार का पोषण करता है उसे ही हत्यारे के रूप में फाँसी दी जाती है। प्रत्यक्ष अपराधकर्ता अप्रत्यक्ष भोक्ता की अपेक्षा पापकर्मों के लिए अधिक उत्तरदायी है। अत: परम विद्वान चाणक्य पण्डित कहते हैं कि मनुष्य के पास जो कुछ भी है उसे सत्- कार्य में या भगवान् के लिए व्यय कर देना चाहिए, क्योंकि कोई अपने साथ धन-दौलत नहीं ले जाता। धन-दौलत यहीं रही आती है और नष्ट हो जाती है। अत: या तो हम धन को त्यागें अन्यथा धन हमें त्यागेगा, किन्तु हम दोनों विलग होकर रहेंगे। जब तक धन हमारे पास है तब तक उसका सर्वोत्तम उपयोग यही है कि कृष्णभावनामृत प्राप्त करने में इसका व्यय किया जाय।

 
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