अत: जो व्यक्ति केवल कुत्सित साधनों से अपने परिवार तथा कुटुम्बियों का पालन करने के लिए लालायित रहता है, वह निश्चय ही अन्धतामिस्र नामक गहनतम नरक में जाता है।
तात्पर्य
इस श्लोक में तीन शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। केवलेन का अर्थ है “कुत्सित साधनों से”, अधर्मेण का अर्थ है “पापपूर्ण अथवा अधार्मिक” और कुटुम्ब-भरण का अर्थ है “परिवार का पालन पोषण।” निस्सन्देह परिवार का पालन गृहस्थ का कर्तव्य है, किन्तु उसे शास्त्रसम्मत विधि से ही जीविका कमानी चाहिए। भगवद्गीता में बताया गया है कि भगवान् ने सामाजिक पद्धति को चार वर्णों या जातियों में उनके गुण तथा कर्म के अनुसार विभाजित किया है। भगवद्गीता के अतिरिक्त, प्रत्येक समाज में मनुष्य अपने गुण तथा कार्य के अनुसार ही जाना जाता है। उदाहरणार्थ, लकड़ी का काम करने वाला बढ़ई कहलाता है तथा लोहे तथा निहाई का काम करने वाला लुहार कहलाता है। इसी प्रकार चिकित्सा तथा इंजीनियरी क्षेत्रों में लगे मनुष्यों के विशेष कार्य तथा उपाधियाँ होती हैं। परमेश्वर ने इन समस्त मानवीय कार्यों को चार वर्णों में विभाजित किया जिनके नाम हैं—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। भगवद्गीता तथा अन्य वैदिक ग्रन्थों में इन चारों वर्णों के कर्तव्यों का उल्लेख है।
मनुष्य को अपनी योग्यता के अनुसार निष्ठापूर्वख काम करना चाहिए। उसे अनुचित ढंग से जिनके लिए वह योग्य नहीं है, जीविका अर्जित नहीं करनी चाहिए। यदि ब्राह्मण को धर्माचार्य के रूप में योग्यता प्राप्त नहीं है, किन्तु धर्माचार्य का कार्य करता है, जिसका कार्य है अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक जीवन-शैली बताना, तो वह जनता को ठग रहा होता है। मनुष्य को ऐसे अनुचित साधनों से धन नहीं कमाना चाहिए। यही बात क्षत्रिय तथा वैश्य पर भी लागू होती है। इसका विशेष उल्लेख हुआ है कि जो लोग कृष्णभावनामृत में अग्रसर होना चाहते हैं उनकी जीविका के साधन अत्यन्त न्यायोचित तथा जटिलता-रहित होने चाहिए। यहाँ इसका उल्लेख है कि जो अनुचित साधनों से (केवलेन) जीविकोपार्जन करता है उसे गहनतम नरक में भेजा जाता है। अन्यथा यदि वह शास्त्रोक्त विधियों से तथा ईमानदारी के साथ परिवार का भरण करता है, तो पारिवारिक व्यक्ति बनने में किसी को आपत्ति नहीं होगी।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.