मनुष्य को अपने जीवनस्तर के प्रति इस प्रकार का सन्तोष अपने शरीर, पत्नी, घर, सन्तान, पशु, सम्पत्ति तथा मित्रों के प्रति प्रगाढ़ आकर्षण के कारण ही होता है। ऐसी संगति में बद्धजीव अपने आपको पूरी तरह सही मानता है।
तात्पर्य
मानव जीवन की तथाकथित पूर्णता मनगढंत है। इसीलिए कहा जाता है कि कोई भौतिकतावादी कितना ही योग्य क्यों न हो, अयोग्य होता है, क्योंकि वह ऐसे मानसिक स्तर पर डोल रहा होता है, जो उसे क्षणिक जीवन की ओर पुन: खींच लाता है। जो मनुष्य मानसिक तल (मनोधर्म) पर कार्य करता है, वह आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर पाता। ऐसा व्यक्ति पुन: भौतिक जीवन में आ गिरता है। ऐसे समाज, मित्रता तथा प्रेम की संगति में बद्धजीव अपने को पूर्णतया सन्तुष्ट मानता है।
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