श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 30: भगवान् कपिल द्वारा विपरीत कर्मों का वर्णन  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.30.8 
आक्षिप्तात्मेन्द्रिय: स्त्रीणामसतीनां च मायया ।
रहो रचितयालापै: शिशूनां कलभाषिणाम् ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
आक्षिप्त—मोहित; आत्म—हृदय; इन्द्रिय:—इन्द्रियाँ; स्त्रीणाम्—स्त्रियों का; असतीनाम्—झूठी; च—तथा; मायया—माया के द्वारा; रह:—एकान्त स्थान में; रचितया—प्रदर्शित; आलापै:—बातचीत से; शिशूनाम्—बच्चों के; कल-भाषिणाम्—मीठे-मीठे शब्दों से ।.
 
अनुवाद
 
 वह उस स्त्री को अपना हृदय तथा इन्द्रियाँ दे बैठता है, जो झूठे ही उसे माया से मोह लेती है। वह उसके साथ एकान्त में आलिंगन तथा संभाषण करता है और अपने छोटे छोटे बच्चों के मीठे-मीठे बोलों से मुग्ध होता रहता है।
 
तात्पर्य
 माया के राज्य के भीतर पारिवारिक जीवन शाश्वत जीव के लिए बंदीगृह के तुल्य है। बंदीगृह में बन्दी के हथकड़ी-बेड़ी पड़ी रहती हैं। इसी प्रकार बद्धजीव स्त्री के मनोहर सौंदर्य, उसके एकांत आलिंगन तथा प्रेमवार्ता से एवं छोटे-छोटे बच्चों की मधुर वाणी से जकड़ा रहता है। इस तरह वह अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है।

इस श्लोक में स्त्रीणाम् असतीनाम् शब्द सूचित करते हैं स्त्री का प्रेम पुरुष के मन को विचलित करने के लिए है। वस्तुत: इस भौतिक जगत में प्रेम कहाँ? स्त्री तथा पुरुष दोनों ही अपनी-अपनी इन्द्रियतृप्ति में लगे रहते हैं। इन्द्रियतृप्ति के लिए स्त्री झूठा प्रेम उत्पन्न करती है और मनुष्य इस झूठे प्रेम से मुग्ध होकर अपने वास्तविक कर्म (धर्म) को भूल जाता है। जब ऐसे संयोग से सन्तान उत्पन्न होती है, तो अगला आकर्षण होता है इन बच्चों की मीठी (तोतली) बोली। घर में स्त्री का प्रेम तथा बच्चों की बोली उसे सुरक्षित बन्दी बना लेते हैं और इस तरह वह अपना घर छोड़ नहीं पाता। वैदिक भाषा में ऐसा व्यक्ति गृहमेधी कहलाता है, जिसका अर्थ है “जिसके आकर्षण का केन्द्रबिन्दु घर है।” गृहस्थ वह है, जो अपने परिवार, पत्नी तथा बच्चों के साथ रहता है, किन्तु उसका वास्तविक जीवन-लक्ष्य कृष्णभक्ति उत्पन्न करना है। इसलिए मनुष्य को गृहस्थ बनने की सलाह दी जाती है, गृहमेधी बनने की नहीं। गृहस्थ की मुख्य चिन्ता मोह-जनित पारिवारिक जीवन से छूटकर कृष्ण के साथ वास्तविक पारिवारिक जीवन में प्रविष्ट करना है, जबकि गृहमेधी का कार्य तथाकथित पारिवारिक जीवन से अपने को जन्म-जन्मान्तर तक बारम्बार बाँधना और निरन्तर माया के अन्धकार में बने रहना है।

 
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