श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.31.18 
येनेद‍ृशीं गतिमसौ दशमास्य ईश
संग्राहित: पुरुदयेन भवाद‍ृशेन ।
स्वेनैव तुष्यतु कृतेन स दीननाथ:
को नाम तत्प्रति विनाञ्जलिमस्य कुर्यात् ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
येन—जिसके द्वारा (भगवान् के द्वारा); ईदृशीम्—ऐसी; गतिम्—स्थिति; असौ—वह व्यक्ति (मैं); दश-मास्य:— दस मास का; ईश—हे प्रभु; सङ्ग्राहित:—स्वीकार कराया जाता है; पुरु-दयेन—अत्यन्त दयालु; भवादृशेन— अतुलनीय; स्वेन—अपना; एव—अकेला; तुष्यतु—वे प्रसन्न हों; कृतेन—अपने कर्म से; स:—वह; दीन-नाथ:— पतितों के आश्रय; क:—कौन; नाम—निस्सन्देह; तत्—वह दया; प्रति—बदले में; विना—अतिरिक्त; अञ्जलिम्— हाथ जोडक़र; अस्य—भगवान् के; कुर्यात्—कर सकता है ।.
 
अनुवाद
 
 हे भगवान्, आपकी अहैतुकी कृपा से मुझमें चेतना आई, यद्यपि मैं अभी केवल दस मास का हूँ। पतितात्माओं के मित्र भगवान् की इस अहैतुकी कृपा के लिए कृतज्ञता प्रकट करने के हेतु मेरे पास हाथ जोडक़र प्रार्थना करने के अतिरिक्त है ही क्या?
 
तात्पर्य
 जैसाकि भगवद्गीता में कहा गया है कि शरीर के भीतर आत्मा के साथ स्थित परमात्मा ही बुद्धि तथा विस्मृति के देने वाले हैं। जब भगवान् देखते हैं कि बद्धजीव माया के बन्धन से छूटने के लिए उत्सुक है, तो वे भीतर से परमात्मा के रूप में और बाहर से गुरु रूप में बुद्धि प्रदान करते हैं अथवा साक्षात् भगवान् का अवतार लेकर उपदेश देते हैं, यथा भगवद्गीता। भगवान् सदैव ऐसा अवसर देखते रहते हैं कि पतित आत्माओं को ईश्वर के धाम ले जाँय। हमें भगवान् के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, क्योंकि वे हमें सदैव सुखी बनाना चाहते हैं। हमारे पास भगवान् को उनकी भलाई का बदला चुकाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है, अत: हम केवल कृतज्ञता का अनुभव कर सकते हैं और हाथ जोडक़र उनकी प्रार्थना कर सकते हैं। कुछ नास्तिक लोग गर्भस्थ शिशु की इस प्रार्थना के विषय में सन्देह व्यक्त कर सकते हैं कि शिशु अपनी माँ के गर्भ में ऐसी सुन्दर प्रार्थना किस तरह कर सकता है? किन्तु भगवान् की कृपा से सब कुछ सम्भव है। बाह्य रूप से शिशु को इतनी भयावह स्थिति में रखा जाता है, किन्तु आन्तरिक रूप से वह वही है और भगवान् वहाँ होते हैं। भगवान् की दिव्य शक्ति से सब कुछ सम्भव है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥