शायितोऽशुचिपर्यङ्के जन्तु: स्वेदज-दूषिते ।
नेश: कण्डूयनेऽङ्गानामासनोत्थानचेष्टने ॥ २६ ॥
शब्दार्थ
शायित:—लिटाया गया; अशुचि-पर्यङ्के—मैले कुचैले बिस्तर पर; जन्तु:—शिशु; स्वेद-ज—पसीने से उत्पन्न प्राणियों से; दूषिते—पूर्ण; न ईश:—असमर्थ; कण्डूयने—खुजलाते हुए; अङ्गानाम्—अपने अंगों का; आसन—बैठे हुए; उत्थान—खड़े हुए; चेष्टने—या चलते हुए ।.
अनुवाद
पसीने तथा कीड़ों से भरे हुए मैले-कुचैले बिस्तर पर लिटाया हुआ शिशु खुजलाहट से मुक्ति पाने के लिए अपना शरीर खुजला भी नहीं पाता; बैठने, खड़े होने या चलने की बात तो दूर रही।
तात्पर्य
ध्यान देने की बात है कि शिशु रोता हुआ तथा पीड़ा का अनुभव करता हुआ उत्पन्न होता है। जन्म के बाद भी वही कष्ट चालू रहता है और वह रोता जाता है।
चूँकि मल तथा मूत्र के कारण मैले-कुचैले बिस्तर के कीड़े उसे परेशान करते हैं, इसीलिए वह बेचारा रोता है। वह इसका कोई उपचार नहीं कर सकता।
____________________________
All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥