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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.31.27 
तुदन्त्यामत्वचं दंशा मशका मत्कुणादय: ।
रुदन्तं विगतज्ञानं कृमय: कृमिकं यथा ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
तुदन्ति—काटते हैं; आम-त्वचम्—मुलायम चमड़ी वाले बालक को; दंशा:—डाँस (बड़ा मच्छर); मशका:— मच्छर; मत्कुण—खटमल; आदय:—इत्यादि अन्य प्राणी; रुदन्तम्—रोते हुए; विगत—विनष्ट; ज्ञानम्—ज्ञान; कृमय:—कीड़े; कृमिकम्—कीड़े को; यथा—जिस तरह ।.
 
अनुवाद
 
 इस असहाय अवस्था में मुलायम त्वचा वाले बालक को डाँस, मच्छर, खटमल तथा अन्य कीड़े काटते रहते हैं, जिस तरह बड़े कीड़े को छोटे-छोटे कीड़े काटते रहते हैं। बालक अपना सारा ज्ञान गँवा कर जोर-जोर से चिल्लाता है।
 
तात्पर्य
 विगत ज्ञानम् शब्द का अर्थ है कि शिशु ने उदर में जो आध्यात्मिक ज्ञान विकसित किया था वह माया के प्रभाव से पहले ही नष्ट हो जाता है। अनेक प्रकार के उत्पातों एवं उदर से बाहर आने के कारण बालक को स्मरण नहीं रह जाता कि अपने मोक्ष के लिए वह क्या सोच रहा था। यह मान लिया जाता है कि यदि कोई व्यक्ति ऊपर उठने का आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर भी ले, तो परिस्थितियों के वशीभूत होकर वह उसे भूल सकता है। अत: न केवल शिशुओं को, अपितु वयस्क पुरुषों को अपने कृष्णभावना सम्बन्धी ज्ञान बचाने के लिए सचेत रहना चाहिए और प्रतिकूल परिस्थितियों से बचना चाहिए जिससे वे अपना मुख्य कर्तव्य न भूलें।
 
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