सत्यम्—सत्य; शौचम्—स्वच्छता; दया—दया; मौनम्—गम्भीरता; बुद्धि:—बुद्धि; श्री:—सम्पन्नता; ह्री:—लज्जा; यश:—ख्याति; क्षमा—क्षमा; शम:—मन का निग्रह; दम:—इन्द्रियों का निग्रह; भग:—सम्पत्ति; च—तथा; इति— इस प्रकार; यत्-सङ्गात्—जिसकी संगति से; याति सङ्क्षयम्—विनष्ट हो जाते हैं ।.
अनुवाद
वह सत्य, शौच, दया, गम्भीरता, आध्यात्मिक बुद्धि, लज्जा, संयम, यश, क्षमा, मन-निग्रह, इन्द्रिय-निग्रह, सौभाग्य और ऐसे ही अन्य सुअवसरों से विहीन हो जाता है।
तात्पर्य
जिन्हें विषयी जीवन की लत पड़ चुकी है वे न तो परम सत्य का अभिप्राय समझ सकते हैं, न अपनी आदतें सुधार सकते हैं; अन्यों के प्रति दया दिखाना तो दूर रहा। वे गम्भीर नहीं रह पाते और जीवन के लक्ष्य के प्रति उनकी कोई रुचि नहीं रहती। जीवन का चरम लक्ष्य कृष्ण या विष्णु है, किन्तु जिन्हें विषयी जीवन की लत पड़ी है वे यह नहीं समझ पाते कि उनका चरम हित कृष्णभावनामृत में है। ऐसे लोगों में शालीनता का अभाव रहता है और वे सरे आम सडक़ों या पार्कों में एक दूसरे का आलिंगन करते हैं मानो कुत्तों-बिल्ली
हों और इसे वे प्रेमालाप कहते हैं। ऐसे अभागे प्राणी कभी सम्पन्न नहीं हो पाते। कुत्ते-बिल्लियों जैसा आचरण उन्हें कुत्ते-बिल्ली के पद पर ला देता है। वे अपनी भौतिक स्थिति को भी सुधार नहीं पाते, प्रसिद्ध होना तो दूर रहा। ऐसे मूर्ख कभी-कभी तथाकथित योग का दिखावा करते हैं, किन्तु योग का जो मुख्य उद्देश्य है—इन्द्रिय तथा मन को वश में करना—उसमें वे असमर्थ रहते हैं। ऐसे लोगों को जीवन में ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होता। दूसरे शब्दों में, वे अत्यन्त अभागे हैं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥