भगवान् परम पुरुष हैं अर्थात् परम नर हैं। जिस प्रकार सामान्य नर में मादा के प्रति आकृष्ट होने की चाह रहती है, वही उत्कटता भगवान् में भी पाई जाती है। वे भी स्त्री के सुन्दर रूप द्वारा मुग्ध होते हैं। प्रश्न यह है कि यदि वे ऐसे स्त्री-आकर्षण द्वारा मुग्ध होते रहते हैं, तो क्या वे किसी भौतिक स्त्री द्वारा आकृष्ट होंगे? ऐसा सम्भव नहीं है। इस संसार के लोग भी स्त्री आकर्षण का परित्याग कर सकते हैं यदि वे परब्रह्म द्वारा आकृष्ट हों। हरिदास ठाकुर के साथ ऐसा ही हुआ। एक सुन्दर वेश्या ने अर्धरात्रि में उन्हें आकर्षित करना चाहा, किन्तु वे भक्ति में, भगवान् के दिव्य प्रेम में स्थित थे, अत: उसके द्वारा मोहित नहीं हुए। उल्टे उन्होंने अपनी दिव्य संगति से उस वेश्या को महान् भक्त बना दिया। अत: भौतिक आकर्षण परमेश्वर को आकृष्ट नहीं कर सकता। जब वे किसी स्त्री द्वारा आकृष्ट होते हैं, तो वे उस स्त्री को अपनी शक्ति से उत्पन्न करते हैं। वह स्त्री राधारानी है। गोस्वामियों ने बताया है कि राधा तो भगवान् की ह्लादिनी शक्ति का प्रकट रूप हैं। जब भगवान् दिव्य आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं, तो वे अपनी अन्तरंगा शक्ति से स्त्री उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार स्त्री-सौंदर्य के प्रति आकर्षण सहज (प्राकृतिक) है, क्योंकि यह आध्यात्मिक जगत में पाया जाता है। भौतिक जगत में वह विकृत होकर प्रतिबिम्बित होता है इसीलिए अनेक उन्माद होते हैं। यदि कोई भौतिक सौन्दर्य के द्वारा आकृष्ट न होकर राधारानी तथा कृष्ण के सौन्दर्य द्वारा आकृष्ट होने का अभ्यास कर ले तो भगवद्गीता का यह कथन परम् दृष्ट्वा निवर्तते—सत्य सिद्ध होए। एक बार राधा तथा कृष्ण के दिव्य सौंदर्य से आकर्षित हो जाने पर, फिर कोई भौतिक सौन्दर्य के प्रति आकृष्ट नहीं होता। राधाकृष्ण पूजा का यही विशेष महत्त्व है। इसकी पुष्टि यामुनाचार्य ने की है। उनका कथन है, “चूँकि मैं राधाकृष्ण के सौन्दर्य से आकृष्ट हो चुका हूँ, अत: जब भी किसी स्त्री के प्रति आकर्षण होता है या किसी स्त्री के साथ प्रसंग का स्मरण हो आता है, तो मैं उस पर थूकता हूँ और मेरा मुख घृणा से भर जाता है।” जब हम मदनमोहन तथा कृष्ण एवं उनकी प्रेमिकाओं के सौन्दर्य द्वारा आकर्षित होते हैं और हमारे बद्धजीवन की शृंखलाएँ अर्थात् स्त्री का सौंदर्य हमें आकृष्ट नहीं करता। |