श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 31: जीवों की गतियों के विषय में भगवान् कपिल के उपदेश  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.31.7 
कटुतीक्ष्णोष्णलवणरूक्षाम्‍लादिभिरुल्बणै: ।
मातृभुक्तैरुपस्पृष्ट: सर्वाङ्गोत्थितवेदन: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
कटु—कड़वा; तीक्ष्ण—तीता; उष्ण—गरम; लवण—नमकीन; रूक्ष—सूखा; अम्ल—खट्टा; आदिभि:—इत्यादि से; उल्बणै:—अत्यधिक; मातृ-भुक्तै:—माता द्वारा खाये गये भोजन से; उपस्पृष्ट:—प्रभावित; सर्व-अङ्ग—सारे शरीर में; उत्थित—उत्पन्न हुआ; वेदन:—दर्द, पीड़ा ।.
 
अनुवाद
 
 माता के खाये कड़वे, तीखे, अत्यधिक नमकीन या खट्टे भोजन के कारण शिशु के शरीर में निरन्तर पीड़ा रहती है, जो प्राय: असह्य होती है।
 
तात्पर्य
 माता के गर्भ में स्थित शिशु की शारीरिक अवस्था का पूरा वर्णन कर पाना असम्भव है। ऐसी स्थिति में रहना अत्यन्त कठिन होता है, किन्तु फिर भी शिशु को उसी में रहना ही पड़ता है। चेतना का ठीक से विकास न होने के कारण शिशु इसे सहन करता है अन्यथा वह मर जाय। यह माया का आशीर्वाद है, जो कष्ट सहने वाले शरीर को ऐसी भीषण यातनाएँ सहने की शक्ति प्रदान करता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥