जो योगी प्राणायाम तथा मन-निग्रह द्वारा इस संसार से विरक्त हो जाते हैं, वे ब्रह्मलोक पहुँचते हैं, जो बहुत ही दूर है। वे अपना शरीर त्याग कर ब्रह्मा के शरीर में प्रविष्ट होते हैं, अत: जब ब्रह्मा को मोक्ष प्राप्त होता है और वे भगवान् के पास जाते हैं, जो परब्रह्म हैं, तो ऐसे योगी भी भगवद्धाम में प्रवेश करते हैं।
तात्पर्य
योगसिद्धि प्राप्त करने के बाद योगी ब्रह्मलोक या सत्यलोक पहुँच सकते हैं और अपना शरीर त्यागने के बाद वे ब्रह्मा के शरीर में प्रविष्ट करते हैं। चूँकि वे भगवान् के प्रत्यक्ष भक्त नहीं होते, अत: इन्हें सीधे मोक्ष नहीं मिलता। इन्हें ब्रह्मा के मोक्ष पाने तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है और ये ब्रह्मा के साथ ही मुक्त हो पाते हैं। यह स्पष्ट है कि जब तक जीव किसी अन्य देवता की उपासना करता है, तो उसकी चेतना उसी देवता में लीन रहती है, अत: वे न तो प्रत्यक्ष मोक्ष प्राप्त करते हैं अथवा भगवद्धाम में प्रवेश कर पाते हैं, न ही भगवान् के निराकार तेज में लीन हो पाते हैं। ऐसे योगी या देवता-उपासकों को पुन: सृष्टि होने पर फिर से जन्म लेना पड़ता है।
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