जो लोग इस संसार के प्रति अत्यधिक आसक्त हैं, वे अपने नियत कर्मों को बड़े ही ढंग से तथा अत्यन्त श्रद्धापूर्वक सम्पन्न करते हैं। वे ऐसे नित्यकर्मों को कर्मफल की आशा से करते हैं।
तात्पर्य
भागवत के इस श्लोक में तथा अगले छह श्लोकों में अत्यधिक आसक्त लोगों की आलोचना हुई है। शास्त्रों का आदेश है कि जो भौतिक सुखों को भोगने में अत्यधिक अनुरक्त होते हैं उन्हें इनका परित्याग करके कुछ अनुष्ठान करने होते हैं। उन्हें स्वर्ग पहुँचने के लिए दैनिक जीवन में कुछ विधि-विधानों का पालन करना होता है। इस श्लोक में कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति कभी भी मुक्त नहीं हो सकते। जो लोग इस भावना से देवताओं की पूजा करते हैं कि हर देवता पृथक् ईश्वर है वे कभी भी वैकुण्ठ नहीं जा पाते, उन लोगों की बात तो दूर रही जो अपनी भौतिक दशा सुधारने के लिए केवल कर्म करते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.