वासुदेवे—कृष्ण के प्रति; भगवति—भगवान्; भक्ति-योग:—भक्ति; प्रयोजित:—की गयी; जनयति—उत्पन्न करती है; आशु—तुरन्त; वैराग्यम्—विरक्ति; ज्ञानम्—ज्ञान; यत्—जो; ब्रह्म-दर्शनम्—आत्म-साक्षात्कार ।.
अनुवाद
कृष्णचेतना में लगने और भक्ति को कृष्ण में लगाने से ज्ञान, विरक्ति तथा आत्म- साक्षात्कार में प्रगति करना सम्भव है।
तात्पर्य
अल्पज्ञ कहते हैं कि भक्तियोग उन लोगों के लिए है, जो दिव्य ज्ञान तथा वैराग्य में अग्रसर नहीं हो पाए हैं। किन्तु वास्तविकता तो यह है कि जो समग्र कृष्णचेतना से भक्ति में लगा रहता है उसे न तो वैराग्य के लिए अलग से प्रयत्न करना पड़ता है और न दिव्य ज्ञान जागृत होने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कहा जाता है, जो व्यक्ति अविचल भाव से भगवान् की भक्ति में लगा रहता है उसमें स्वत: देवताओं के गुण आ जाते हैं। कोई यह नहीं खोज कर सकता है कि ये गुण भक्तों में कैसे आते हैं, किन्तु होता यही है। ऐसा एक उदाहरण है। एक शिकारी को पशुओं को मारने में बड़ा मजा आता था, किन्तु भक्त हो जाने पर वह एक चींटी भी मारने को तैयार न था। ऐसा होता है भक्त का गुण।
जो लोग दिव्य ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक हैं उन्हें चाहिए कि समय खोये बिना विशुद्ध भक्ति में लग जाँय। परम सत्य विषयक ज्ञान के बारे में किसी निश्चित मत तक पहुँचने में इस श्लोक में आया हुआ ब्रह्म-दर्शनम् शब्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस शब्द का अर्थ है अध्यात्म का अनुभव या ज्ञान। वासुदेव की सेवा करने वाला ही ब्रह्म को समझ सकता है। यदि ब्रह्म निराकार है, तो दर्शनम् अर्थात् प्रत्यक्ष दर्शन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। दर्शनम् तो भगवान् वासुदेव के देखने को बताता है। जब तक देखने वाला तथा देखा जाने वाला (दर्शनीय) व्यक्ति न हो तब तक दर्शनम् नहीं हो सकता। ब्रह्मदर्शनम् का अर्थ है कि ज्योंही मनुष्य भगवान् को देखता है उसे तुरन्त निराकार ब्रह्म का अनुभव हो जाता है। भक्त को ब्रह्म की प्रकृति जानने के लिए अलग से प्रयास करने की आवश्यकता नहीं रहती। इसकी पुष्टि भगवद्गीता से भी होती है। ब्रह्मभूयाय कल्पते—भक्त तुरन्त परम सत्य में स्वरूपसिद्ध हो जाता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.