ऐसे भौतिकवादी व्यक्ति इन्द्रियतृप्ति से आकृष्ट होकर एवं अपने पितरों एवं देवताओं के प्रति भक्तिभाव रखकर चन्द्रलोक को जा सकते हैं, जहाँ वे सोमरस का पान करते हैं और फिर से इसी लोक में लौट आते हैं।
तात्पर्य
चन्द्रमा को स्वर्ग का एक लोक माना जाता है। विभिन्न वेदविहित यज्ञों यथा देवों एवं पितरों की पूजा सम्पन्न करने पर मनुष्य इस लोक को जाता है। किन्तु कोई यहाँ अधिक काल तक नहीं रह पाता। देवताओं की गणना के अनुसार चन्द्रमा पर जीवन की अवधि दस हजार वर्ष है। देवताओं की काल गणना में एक दिन (१२ घंटे) इस लोक के छह मास के बराबर होते हैं। चन्द्रमा तक स्पुतनिक जैसे किसी भौतिक यान द्वारा नहीं ही पहुँचा जा सकता, किन्तु पुण्यकर्म करने से भौतिक भोगों के प्रति आसक्त लोग वहाँ पहुँच सकते हैं। जब यज्ञ कर्मों का पुण्य समाप्त हो जाता है, तो चन्द्रलोक तक पहुँच जाने पर भी मनुष्य को पृथ्वी पर पुन: आना पड़ता है। इसकी पुष्टि भगवद्गीता (९.२१) में भी हुई है—ते तां भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
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