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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 32: कर्म-बन्धन  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  3.32.39 
नैतत्खलायोपदिशेन्नाविनीताय कर्हिचित् ।
न स्तब्धाय न भिन्नाय नैव धर्मध्वजाय च ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
—नहीं; एतत्—यह उपदेश; खलाय—ईर्ष्यालुओं को; उपदिशेत्—उपदेश देना चाहिए; —नहीं; अविनीताय— अविनीत को; कर्हिचित्—कभी; —नहीं; स्तब्धाय—घमंडी को; —नहीं; भिन्नाय—दुराचारी को; —नहीं; एव—निश्चय ही; धर्म-ध्वजाय—दम्भियों को; —भी ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् कपिल ने आगे कहा : यह उपदेश उन लोगों के लिए नहीं है, जो ईर्ष्यालु हैं, अविनीत हैं या दुराचारी हैं। न ही यह उपदेश दम्भियों या उन व्यक्तियों के लिए है, जिन्हें अपनी भौतिक सम्पदा का गर्व है।
 
 
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