श्रद्दधानाय—श्रद्धालु; भक्ताय—भक्त के लिए; विनीताय—विनीत; अनसूयवे—ईर्ष्यारहित; भूतेषु—समस्त जीवों को; कृत-मैत्राय—मैत्रीभाव; शुश्रूषा—सेवा; अभिरताय—करने के लिए इच्छुक; च—तथा ।.
अनुवाद
ऐसे श्रद्धालु भक्त को उपदेश दिया जाय जो गुरु के प्रति सम्मानपूर्ण, द्वेष न करने वाला, समस्त जीवों के प्रति मैत्री भाव रखने वाला हो तथा श्रद्धा और निष्ठापूर्वक सेवा करने के लिए उत्सुक हो।
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