हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 32: कर्म-बन्धन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.32.7 
सूर्यद्वारेण ते यान्ति पुरुषं विश्वतोमुखम् ।
परावरेशं प्रकृतिमस्योत्पत्त्यन्तभावनम् ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
सूर्य-द्वारेण—प्रकाश मार्ग से होकर; ते—वे; यान्ति—निकट जाते हैं; पुरुषम्—भगवान् के; विश्वत:-मुखम्— जिसका मुख सर्वत्र घूमता है; पर-अवर-ईशम्—आध्यात्मिक तथा भौतिक जगतों का स्वामी; प्रकृतिम्—भौतिक कारण; अस्य—संसार की; उत्पत्ति—प्राकट्य का; अन्त—प्रलय का; भावनम्—कारण ।.
 
अनुवाद
 
 ऐसे मुक्त पुरुष प्रकाशमान मार्ग से होकर भगवान् तक पहुँचते हैं, जो भौतिक तथा आध्यात्मिक जगतों का स्वामी है और इन जगतों की उत्पत्ति तथा अन्त का परम कारण है।
 
तात्पर्य
 सूर्यद्वारेण शब्द का अर्थ है “प्रकाशमान पथ के द्वारा” अथवा सूर्यलोक से होकर। यह प्रकाशित मार्ग भक्ति है। वेदों में सलाह दी गई है कि अंधकार से होकर न जाए, सूर्यलोक से होकर जाए। यहाँ इसकी भी संस्तुति की गई है कि प्रकाशमान पथ से चलकर प्रकृति के गुणों के कल्मष से मुक्त हुआ जा सकता है; इसी मार्ग से होकर भगवान् के निवासस्थान में प्रवेश किया जा सकता है। पुरुषं विश्वतोमुखम् पद का अर्थ है श्रीभगवान्, जो परम पूर्ण हैं। परमेश्वर के अतिरिक्त सारे प्राणी अत्यन्त लघु हैं, भले ही हमारी गणना से वे बड़े लगें। हर कोई अत्यन्त सूक्ष्म है, अत: वेदों में परमेश्वर को समस्त शाश्वतों में परम शाश्वत के रूप में कहा गया है। वे भौतिक तथा आध्यात्मिक जगतों के स्वामी हैं और संसार के परम कारण हैं। प्रकृति अवयव मात्र है, क्योंकि वस्तुत: उत्पत्ति तो उनकी शक्ति से होती है। माया भी उनकी शक्ति है। जिस प्रकार माता तथा पिता के संयोग से बालक जन्मता है उसी तरह भौतिक शक्ति (माया) तथा भगवान् की चितवन भौतिक जगत की उत्पत्ति का कारण है। अत: सक्षम कारण पदार्थ नहीं, अपितु भगवान् स्वयं हैं।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥