श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.33.1 
मैत्रेय उवाच
एवं निशम्य कपिलस्य वचो जनित्री
सा कर्दमस्य दयिता किल देवहूति: ।
विस्रस्तमोहपटला तमभिप्रणम्य
तुष्टाव तत्त्वविषयाङ्कितसिद्धिभूमिम् ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; एवम्—इस प्रकार; निशम्य—सुनकर; कपिलस्य—कपिल के; वच:—शब्द; जनित्री—माता; सा—वह; कर्दमस्य—कर्दम मुनि की; दयिता—प्रिय पत्नी; किल—नामक; देवहूति:—देवहूति; विस्रस्त—से युक्त होकर; मोह-पटला—मोह का आवरण; तम्—उसको; अभिप्रणम्य—नमस्कार करके; तुष्टाव— स्तुति की; तत्त्व—मूल सिद्धान्त; विषय—के सम्बन्ध में; अङ्कित—रचियता, प्रतिपादक; सिद्धि—मुक्ति की; भूमिम्—पृष्ठभूमि ।.
 
अनुवाद
 
 श्री मैत्रेय ने कहा : इस प्रकार भगवान् कपिल की माता एवं कर्दम मुनि की पत्नी देवहूति भक्तियोग तथा दिव्य ज्ञान सम्बन्धी समस्त अविद्या से मुक्त हो गईं। उन्होंने उन भगवान् को नमस्कार किया जो मुक्ति की पृष्ठभूमि सांख्य दर्शन के प्रतिपादक हैं और तब निम्नलिखित स्तुति द्वारा उन्हें प्रसन्न किया।
 
तात्पर्य
 भगवान् कपिल ने अपनी माता के समक्ष जिस दर्शन-पद्धति का प्रतिपादन किया वह आध्यात्मिक पद पर स्थित होने की पृष्ठभूमि है। इस दर्शन पद्धति की विशिष्ट महत्ता सिद्ध भूमिम् द्वारा यहाँ पर व्यक्त की गई है, जिसका अर्थ है मोक्ष की पृष्ठभूमि। भगवान् कपिल ने जिस सांख्य-दर्शन का प्रतिपादन किया है उसे समझकर माया द्वारा बद्ध लोग, जो इस संसार में दुख भोग रहे हैं, पदार्थ (जड़त्व) के चंगुल से छुटकारा पा सकते हैं। इस दर्शन पद्धति के द्वारा भौतिक जगत में स्थित व्यक्ति भी तुरन्त मुक्त हो सकता है। यह अवस्था जीवन्-मुक्ति कहलाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि इस भौतिक शरीर में रहते हुए भी मनुष्य मुक्त हो जाता है। भगवान् कपिल की माता देवहूति के साथ ऐसा ही हुआ, अत: उन्होंने अपनी स्तुतियों द्वारा भगवान् को सन्तुष्ट किया। जो भी सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्त को समझता है, वह भक्ति को प्राप्त होता है और इसी संसार में वह कृष्णभावनाभावित अर्थात् मुक्त हो जाता है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥