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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.33.11 
श्रद्धत्स्वैतन्मतं मह्यं जुष्टं यद्ब्रह्मवादिभि: ।
येन मामभयं याया मृत्युमृच्छन्त्यतद्विद: ॥ ११ ॥
 
शब्दार्थ
श्रद्धत्स्व—आप आश्वस्त रहें; एतत्—इस विषय में; मतम्—उपदेश; मह्यम्—मेरा; जुष्टम्—पालन किया गया; यत्—जो; ब्रह्म-वादिभि:—अध्यात्मवादियों द्वारा; येन—जिससे; माम्—मुझको; अभयम्—भयरहित; याया:—तुम पहुँचोगी; मृत्युम्—मृत्यु को; ऋच्छन्ति—प्राप्त करते हैं; अ-तत्-विद:—जो लोग इससे अवगत नहीं हैं ।.
 
अनुवाद
 
 हे माता, जो लोग वास्तव में अध्यात्मवादी हैं, वे निश्चित ही मेरे उपदेशों का पालन करते हैं, जो मैंने आपको बताये हैं। आप आश्वस्त रहें, यदि आप इस आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर सम्यक रीति से चलेंगी तो आप समस्त भयावह भौतिक कल्मष से मुक्त होकर अन्त में मेरे पास पहुँचेंगी। हे माता, जो लोग भक्ति की इस विधि से अवगत नहीं हैं, वे जन्म-मरण के चक्र से बाहर नहीं निकल सकते।
 
तात्पर्य
 यह संसार चिन्ताओं से पूर्ण है, अत: भयावह है। जो इस संसार से छूट जाता है, वह स्वत: सभी चिन्ताओं तथा भय से मुक्त हो जाता है। जो भगवान् कपिल द्वारा प्रतिपादित भक्ति-पथ का अनुसरण करते हैं, वे आसानी से मुक्त हो जाते हैं।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥