श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 33: कपिल के कार्यकलाप  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.33.13 
सा चापि तनयोक्तेन योगादेशेन योगयुक् ।
तस्मिन्नाश्रम आपीडे सरस्वत्या: समाहिता ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
सा—वह; च—तथा; अपि—भी; तनय—अपने पुत्र द्वारा; उक्तेन—कहा गया; योग-आदेशेन—योग सम्बन्धी उपदेश से; योग-युक्—भक्तियोग में लगी हुई; तस्मिन्—उस; आश्रमे—कुटिया में; आपीडे—फूलों का मुकुट; सरस्वत्या:—सरस्वती का; समाहिता—समाधि में स्थिर ।.
 
अनुवाद
 
 अपने पुत्र के उपदेशानुसार देवहूति उसी आश्रम में भक्तियोग का अभ्यास करने लगीं। उन्होंने कर्दम मुनि के घर में समाधि लगाई, जो फूलों से इस प्रकार सुसज्जित था मानो सरस्वती नदी का फूलों का मुकुट हो।
 
तात्पर्य
 देवहूति ने अपना घर नहीं छोड़ा, क्योंकि स्त्री के लिए घर छोडऩे की कभी भी संस्तुति नहीं की जाती। वह पराश्रित होती है। यही देवहूति, विवाह के पूर्व अपने पिता स्वायंभुव मनु के संरक्षण में थीं, फिर उनके पिता ने कर्दम मुनि को सौंप दिया। अपनी युवावस्था में वे अपने पति के संरक्षण में थीं और तभी उन्होंने पुत्र रूप में कपिल को जन्म दिया। ज्योंही पुत्र बड़ा हुआ, उनके पति ने घर त्याग दिया। वे चाहतीं तो घर छोड़ सकती थीं, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे घर में ही रहकर अपने महान् पुत्र कपिल मुनि के उपदेश के अनुसार भक्तियोग का अभ्यास करने लगीं। उनके भक्तियोग के कारण ही उनका पूरा घर सरस्वती नदी पर फूल के मुकुट-सा बन गया।
 
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